दादाजी ने कहा, 'गोपाल! मैं अब जाता हूं आप डर गए और मुझे बाहर बुलाया। गोपाल जानबूझकर स्कूल के बाद धीरे-धीरे जा रहा था। सभी बच्चे चले गए। उसने दादा को पुकारा। दादाजी ने गाँव में आकर कहा, 'अपने घर को देखो। अब जाओ। '
गोपाल ने घर आकर अपनी माँ से कहा, 'माँ! दादाजी कितने अच्छे लगते हैं, मीठे लगते हैं। उसकी मोर की जाँघ सर पर। मैं तुम्हें कल दो दूंगा। मैं रोज स्कूल जाऊंगा। ' सीताबाई की आँखों में पानी आ गया।
यह कदम उनके होंठों पर आ गया। भगवान घोड़ों को पालेंगे, द्रौपदी को वस्त्र प्रदान करेंगे, वह दामाजी के लिए एक गुरु बनेंगे, वे जनाबाई के साथ मिलेंगे, वे कबीर के गोले बुनेंगे, और वे धार्मिक मंदिरों की परवरिश करेंगे। सीताबाई ने कहा, 'भगवान! तुम मेरे लिए दौड़ कर नहीं आए। आपके बिना हम कौन हैं? हम आपके हैं। '
एक दिन पंत जी ने कहा, 'बच्चों! मेरे पास घर पर एक मुट्ठी है। फिर भी, मेरे माता-पिता से जो सहायता आप मुझे दे सकते हैं, प्राप्त करें। मेरा काम करवाओ। '
गोपाल ने अपनी माँ से कहा, 'माँ! स्कूल में, पैन्टोजी ने कुछ लाने के लिए कहा। उनके पास घर है। हालांकि इसे छोड़ दो। ' मां ने कहा, 'बेबी! अपने घर में क्या देना है? हम गरीब हैं। ' 'कुछ तो दे दो। अन्य बच्चे मुझ पर हंसेंगे, ”गोपाल ने राडवाले से कहा। सीताबाई ने कहा, 'गोपाल! दादा से पूछो, वह दे देगा। जाओ। ' दरअसल। उसके लिए पूछें। गोपाल यह कहकर चला गया कि वह इसे कुछ साहस देगा।
गोपाल ने दादा से कहा, 'दादा, पंत जी ने हमें कुछ मदद के साथ आने के लिए कहा है। इसे कुछ दे दो। ' दादाजी ने कहा, 'मुझे क्या देना चाहिए रे? मैं एक गाय का झुंड हूं, एक भैंस का झुंड। मेरे पास क्या है? ' गोपाल ने कहा, 'यह क्या है? मां कहती है, मैंने नहीं किया, तुम कहते हो मेरे पास नहीं है। फिर मैं किससे पूछूं? अगर कोई है तो पिताजी देते हैं। करते हैं? नहीं तो मैं रोऊंगा। ' दादाजी ने कहा, 'रो मत। क्या मेरे पास दस की गाड़ी है? नाहिल की गाड़ी? ' गोपाल ने कहा, 'हां। कुछ भी चलेगा दे गदाग। '
गोपाल ने घर आकर अपनी माँ से कहा, 'माँ! दादाजी कितने अच्छे लगते हैं, मीठे लगते हैं। उसकी मोर की जाँघ सर पर। मैं तुम्हें कल दो दूंगा। मैं रोज स्कूल जाऊंगा। ' सीताबाई की आँखों में पानी आ गया।
- 'आप कितने कामगार हैं?'
यह कदम उनके होंठों पर आ गया। भगवान घोड़ों को पालेंगे, द्रौपदी को वस्त्र प्रदान करेंगे, वह दामाजी के लिए एक गुरु बनेंगे, वे जनाबाई के साथ मिलेंगे, वे कबीर के गोले बुनेंगे, और वे धार्मिक मंदिरों की परवरिश करेंगे। सीताबाई ने कहा, 'भगवान! तुम मेरे लिए दौड़ कर नहीं आए। आपके बिना हम कौन हैं? हम आपके हैं। '
एक दिन पंत जी ने कहा, 'बच्चों! मेरे पास घर पर एक मुट्ठी है। फिर भी, मेरे माता-पिता से जो सहायता आप मुझे दे सकते हैं, प्राप्त करें। मेरा काम करवाओ। '
गोपाल ने अपनी माँ से कहा, 'माँ! स्कूल में, पैन्टोजी ने कुछ लाने के लिए कहा। उनके पास घर है। हालांकि इसे छोड़ दो। ' मां ने कहा, 'बेबी! अपने घर में क्या देना है? हम गरीब हैं। ' 'कुछ तो दे दो। अन्य बच्चे मुझ पर हंसेंगे, ”गोपाल ने राडवाले से कहा। सीताबाई ने कहा, 'गोपाल! दादा से पूछो, वह दे देगा। जाओ। ' दरअसल। उसके लिए पूछें। गोपाल यह कहकर चला गया कि वह इसे कुछ साहस देगा।
गोपाल ने दादा से कहा, 'दादा, पंत जी ने हमें कुछ मदद के साथ आने के लिए कहा है। इसे कुछ दे दो। ' दादाजी ने कहा, 'मुझे क्या देना चाहिए रे? मैं एक गाय का झुंड हूं, एक भैंस का झुंड। मेरे पास क्या है? ' गोपाल ने कहा, 'यह क्या है? मां कहती है, मैंने नहीं किया, तुम कहते हो मेरे पास नहीं है। फिर मैं किससे पूछूं? अगर कोई है तो पिताजी देते हैं। करते हैं? नहीं तो मैं रोऊंगा। ' दादाजी ने कहा, 'रो मत। क्या मेरे पास दस की गाड़ी है? नाहिल की गाड़ी? ' गोपाल ने कहा, 'हां। कुछ भी चलेगा दे गदाग। '